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रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध शुरू होने के बाद से ही पूरी दुनिया में तेल के दामों को लेकर हाहाकार मचा है। खासकर विकासशील देशों में तेल की बढ़ती कीमतों का सीधा असर उनकी अर्थव्यवस्था पर पड़ रहा है। वैश्विक स्तर पर भी तेल की बढ़ती कीमतों की वजह से अलग-अलग उत्पादों की कीमत बढ़ी है।
इसके बावजूद यूरोप समेत पश्चिमी देश लगातार भारत और अन्य एशियाई देशों पर रूस से तेल आयात कम करने का दबाव बना रहे हैं। इन देशों का कहना है कि रूस को इस वक्त किसी भी तरह का भुगतान उसे यूक्रेन के खिलाफ युद्ध में मदद करने जैसा है। हालांकि, भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर साफ कर चुके हैं कि भारत जितना तेल रूस से महीनों में खरीदता है, उतनी खरीद यूरोप सिर्फ कुछ दिनों में ही खरीद लेता है। अब उनके दावों को सही बताती हुईं कुछ रिपोर्ट्स भी सामने आई हैं।
हाल ही में दो स्वतंत्र संस्थानों- फिनलैंड के सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एनर्जी (CREA) और कमोडिटी डेटा फर्म केप्लर ने दुनियाभर में रूस के ईंधन की बिक्री को लेकर आंकड़े जारी किए हैं। इन रिपोर्ट्स में रूस से निकलने वाले कच्चे तेल से लेकर प्राकृतिक गैस और कोयले तक के निर्यात का डेटा दिया गया है। ऐसे में अमर उजाला आपको बता रहा है कि आखिर पश्चिमी देशों के दावों के बीच रूस ईंधन आयात के जरिए कितनी कमाई कर रहा है? कौन से देश इस वक्त रूस से सबसे ज्यादा तेल और ईंधन आयात कर रहे हैं? इसके अलावा भारत ने युद्ध शुरू होने के बाद से पिछले चार महीने में रूस से कितना तेल आयात किया है और पश्चिमी देशों की तुलना में यह कितना है?
युद्ध शुरू होने के बाद से ईंधन निर्यात से रूस की कितनी कमाई?
रूस ने यूक्रेन से युद्ध छेड़ने के बाद 100 दिन में 93 अरब यूरो की कमाई की है। चौंकाने वाली बात यह है कि उसकी इस कमाई में एक बड़ा हिस्सा यूरोपीय देशों का है। वह भी तब जब यूरोपीय संघ लगातार रूस पर अपनी निर्भरता घटाने के दावे कर रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक, युद्ध शुरू होने के बाद 100 दिन में रूस की ओर से किए गए कुल ईंधन निर्यात में 61 फीसदी हिस्सा यूरोपीय संघ ने हासिल किया। इसकी कीमत करीब 57 अरब यूरो रही।
कौन से देश कर रहे रूस से सबसे ज्यादा ईंधन आयात?
सीआरईए की रिपोर्ट में युद्ध शुरू होने के बाद 100 दिन में तेल आयात के जो आंकड़े दिए गए हैं, उनसे साफ है कि जंग के दौरान चीन ने रूस से सबसे ज्यादा तेल आयात किया है। अकेले इस देश ने रूस से 13.97 अरब यूरो का ईंधन आयात किया है। यानी रूस के कुल निर्यात में करीब 13-14 फीसदी चीन ने हासिल किया है। इसके बाद आता है यूरोप में सबसे बड़े ऊर्जा उपभोक्ता देश जर्मनी का नाम, जिसने रूस से दूरी बनाने के बड़े-बड़े दावे किए हैं, लेकिन उसका आयात इन 100 दिनों में 12.96 अरब यूरो का रहा है। रूस से ईंधन आयात करने वाले देश में तीसरे नंबर पर नीदरलैंड्स (9.37 अरब यूरो), चौथे पर इटली (8.4 अरब यूरो), पांचवें पर तुर्की (7.4 अरब यूरो), छठवें पर फ्रांस (4.7 अरब यूरो) और सातवें पर पोलैंड (4.5 अरब यूरो) का नाम है। यानी रूस के टॉप सात तेल आयातकों में से पांच यूरोपीय संघ के देश हैं।
रूस से तेल खरीदने में भारत कहां?
भारत ने रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद से मॉस्को से ईंधन खरीद बढ़ाई है। हालांकि, भारत मुख्य तौर पर रूस से तेल की ही खरीद करता है। जहां युद्ध शुरू होने से ठीक पहले फरवरी तक भारत हर दिन रूस से एक लाख बैरल प्रतिदिन कच्चा तेल आयात कर रहा था, वहीं अप्रैल में यह खरीद 3 लाख 70 हजार बैरल प्रतिदिन और फिर मई में 8 लाख 70 हजार बैरल प्रतिदिन तक पहुंच गई। सीआरईए के मुताबिक, भारत इस वक्त रूस के कच्चे तेल के बड़े आयातकों में है। सिर्फ तेल की ही बात की जाए तो भारत इस वक्त रूस के 18 फीसदी निर्यात को हासिल कर रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि रूस के तेल का बड़ा हिस्सा भारत में ही रिफाइन हो कर अमेरिका और यूरोप को भी निर्यात किया जा रहा है।
न्यूज एजेंसी रॉयटर्स के आंकड़ों की मानें तो रूस इस वक्त भारत का दूसरा सबसे बड़ा तेल निर्यातक है। जहां से करीब 12 लाख बैरल तेल प्रति दिन निर्यात हो रहा है। इराक अब भी भारत का पहला सबसे बड़ा तेल निर्यातक है, वहीं सऊदी अरब अब भारत को तेल भेजने वाले देशों में तीसरे स्थान पर खिसक गया है। इसके अलावा संयुक्त अरब अमीरात चौथे और नाइजीरिया पांचवें नंबर पर है।
2021 के मुकाबले कैसे बढ़ा 2022 में रूस से आयात?
2021 तक भारत और रूस के बीच होने वाला व्यापार काफी व्यापक और कई क्षेत्रों में बंटा हुआ था। लेकिन 2022 में तक यह मुख्य तौर पर तेल तक ही सीमित हो गया है। पूरे 2021 में भारत ने रूस से 1.2 करोड़ बैरल कच्चा तेल आयात किया था, जबकि मई 2022 तक ही भारत ने रूस से 6 करोड़ बैरल तेल आयात कर लिया है। यानी महज पांच महीनों में ही पिछले एक साल से पांच गुना तेल खरीद हुई है।
भारत ने रूस से ईंधन आयात बढ़ाया क्यों?
2022 में रूस से कच्चे तेल की खरीद बढ़ाने के बावजूद भारत मॉस्को से ईंधन खरीदने के मामले में 8वें नंबर पर है। इसकी एक वजह कच्चे तेल की उत्पादकता घटाने-बढ़ाने में मनमानी करने वाले ओपेक (OPEC) देश, जिनके चलते अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रूड ऑयल के दाम लगातार बढ़ते जा रहे हैं। दूसरी तरफ इसी दौरान रूस की तरफ से भारत को कच्चा तेल 30-35 डॉलर प्रति बैरल की दर पर मिल रहा है, जो कि 90-120 डॉलर प्रति बैरल की अंतरराष्ट्रीय दरों से काफी कम है। भारत में इस साल बिजली की बढ़ती खपत के चलते कोयले की जरूरत को पूरा करने में भी रूस ने बड़ी भूमिका निभाई है और भारत को करीब 37.3 करोड़ यूरो कीमत का कोयला निर्यात किया है।
रूस से यूरोपीय संघ और भारत की तेल खरीद में कितना फर्क?
रूस के तेल निर्यात पर निगरानी करने वाली संस्था एनर्जी एंड क्लीन एयर के मुताबिक, यूरोपीय संघ के देशों ने यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद से ही रूस से 6 हजार 121 करोड़ यूरो का ईंधन खरीदा है। इनमें कच्चे तेल की 3408 करोड़ यूरो, ईंधन गैस की 2,555 करोड़ यूरो और कोयले की 158.4 करोड़ यूरो खरीद शामिल है। जबकि इस दौरान भारत ने रूस से कुल 399 करोड़ यूरो का ईंधन खरीदा है (कच्चा तेल – 361.1 करोड़ यूरो और कोयला – 37.3 करोड़ यूरो)। इस लिहाज से भारत ने युद्ध शुरू होने के बाद से जितना ईंधन खरीदा है, उतना तेल यूरोपीय संघ महज 11 दिन में ही रूस से खरीद लेता है।
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